एक दिन
एक दिन
कभी कभी कोई दिन ऐसा होता है जब अच्छा भला दिन शुरुआत से ही कोई ऐसी बात कोई ऐसी घटना से रूबरू करवा देता है जिसके बारे में सोच कर हमेशा ही मन कसैला हो उठता है।
वो दिन भी कुछ ऐसा ही था, इतवार का दिन था, ज्यादा पुरानी बात नही अभी पिछले साल की ही बात है।
हर तरफ कोरोना की दूसरी लहर कहर बरपा रही थी, ऐसे में हर आने वाला फोन कॉल या मैसेज किसी न किसी की मदद की गुहार से लबरेज या फिर कोई बुरी खबर लेकर आया ही प्रतीत होता था।
भाई, कहीं हॉस्पिटल में बेड मिल जायेगा क्या?
ऑक्सीजन नहीं मिल रही, बता सकते है, कहां मिलेगी?
रेडिमेस्वियर का कोई जुगाड है क्या, आर्जेंटली चाहिए, पैसे कितने भी खर्च हो जाएं?
रोज मरीजों और लोगों के इस महामारी से हारने की नई और दहला देने वाली खबरें इतनी कि डर के मारे टीवी देखना ही बंद कर दिया था।
ऐसे माहौल में सुबह सुबह मेरे मित्र, विवेक का फोन मेरे मोबाइल पर आते ही मन आशंकित हो उठा और किसी अनहोनी के संशय के साथ मैंने फोन उठाया।
हैलो, सब कुशल है ना विवेक, सुबह सुबह कॉल किया, मैंने डरते डरते पूछा।
हां, घर पर सब सकुशल हैं पर मैंने आपको एक मदद के लिए फोन किया है, विवेक बोला।
हां हां बोलो भाई मैं क्या कर सकता हूं..... एक बार फिर लगा शायद इस महामारी से संबंधित ही कोई बात होगी, मैने सोचा।
बात ये है, कि मेरा एक पुराना साथी, जो आपके घर के पास ही रहता है, सुबह से ही कहीं चला गया है, उसकी पत्नी का फोन आया था, क्या इस बारे में आप कुछ मदद कर सकते हो, विवेक ने एक ही सांस में पूरा किस्सा कह सुनाया।
वो बेचारी समझ नहीं पा रही की क्या करे और घर पर बच्चे भी छोटे हैं, क्या इस बारे में आप कुछ मदद कर पाओगे.... विवेक बोला, आपको तो पता है मेरा घर बहुत दूर है साथ ही महामारी का प्रकोप और दिल्ली में कर्फ्यू भी लगा है, तो सोचा आप ही कुछ मदद कर दो....... विवेक बोला।
अच्छा भाई आप मुझे उनका पता और नंबर दो, मैं देखता हूं मैं क्या मदद कर सकता हूं।
कह तो दिया, पर समझ नहीं आ रहा था करूंगा क्या, बाहर तो हर ओर कोरोना का हाहाकार मचा हुआ था, घर से निकलने में भी जी घबराता था।
कुछ दिनों पहले ही परिवार में कोरोना ने एक करीबी रिश्तेदार की जान ली थी, पर संक्रमण की चिंता वश कोई भी व्यक्ति उनके घर नहीं गया था और उनका दाह संस्कार भी सरकारी देख रेख में ही हुआ था।
खैर, मैने उन सज्जन के घर पर फोन किया और उनकी पत्नी से बात की।
उन्होंने मुझे बताया, कि उनके पति सुबह सुबह करीब 5 बजे बिना किसी को बताए आदत अनुसार घूमने चले गए थे और अपना फोन भी घर पर ही छोड़ गए थे। कुछ दिन पूर्व उनके पिता की महामारी में जान गई थी और वो स्वयं भी संक्रमित हुए थे। तभी से कुछ परेशान से चल रहे थे, बात करते करते वो रोने लगी......बोली भाई साहब कुछ समझ नहीं आ रहा उन्हे गए करीब 6 घंटे होने आए, क्या करूं.....हमारे भाई इत्यादि आ रहे हैं पर उन्हें भी आने में समय लगेगा।
मैंने उन्हें तसल्ली दी और कहा आप उनका कोई ताजा फोटो मुझे भेजें, हम पता करने की कोशिश करते हैं।
कुछ देर में उनका फोटो मुझे उनकी पत्नी ने भेज दिया....।
मैने भी बिना समय गंवाए, उस फोटो को अपने जानकार ग्रुप्स में भेज दिया जो हमारी कॉलोनी में सक्रिय हैं, शीघ्र ही सूचना आसपास फैला दी ताकि जल्दी से उनका कुछ पता चल पाए।
मैने वापस उनके घर फोन करके उनके बेटे को बताया कि हमने सूचना काफी लोगों को प्रसारित कर दी है और पुलिस में भी खबर कर दी है। उम्मीद है जल्द ही उसके पिता जी घर वापस सही सलामत पहुंच जाएंगे।
मैने उसे ढाढस बंधाया और कहा मैं शीघ्र ही दुबारा उनसे बात करूंगा और शीघ्र ही उनसे मिलने भी आऊंगा।
कुछ ही समय बाद पता चला कि उन सज्जन की किसी ट्रक के साथ टक्कर हो गई थी और उनकी घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई।
मेरी हिम्मत नहीं हुई की ये दुखद समाचार उस परिवार तक कैसे पहुंचाऊं। बहुत देर सोचने के बाद मैने विवेक को फोन मिला कर उनके बारे में बताया।
तब तक ये मनहूस खबर उन तक पहुंच चुकी थी, क्योंकि मैने व्हाट्सएप पोस्ट में उनका नाम और नंबर भी प्रेषित किया था।
उस दिन मैंने कई बार सोचा क्यूं ना शोक संतप्त परिवार से संवेदना प्रकट करने के लिए उनसे मिलूं अथवा फोन ही कर दूं पर हर बार समझ ही नहीं आता था क्या कहूंगा, कैसे कहूंगा...... सच मानिए उस दिन के बाद भी बहुत बार सोचा.....पर हर बार एक ही विचार ने कदम रोक दिए.... क्या कह कर सांत्वना दूंगा उस परिवार को..... मुझे आप ही बताइए एक परिवार का मुखिया.... परिवार का एकमात्र कमाने वाला यूं अचानक चला जाए, उनको कोई कैसे और क्या कह कर ढाढस बंधाएगा........????
आभार – नवीन पहल – १६.०४.२०२२ 🙏🙏
नोट – सत्य घटना
# प्रतियोगिता हेतु
Shnaya
19-Apr-2022 04:51 PM
Very nice 👍🏼
Reply
Shrishti pandey
18-Apr-2022 02:25 PM
Nice
Reply
Sachin dev
17-Apr-2022 08:13 PM
👍👍
Reply